tag:blogger.com,1999:blog-5739126173542129952024-02-19T10:02:15.798+05:30मन की सोचआवाज ... अंतरात्मा कीविजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-58714468126304185082011-07-10T22:41:00.001+05:302011-07-10T22:45:59.388+05:30मैं और मेरे पिता<p>जब मै 3 वर्ष का था तब मै सोचता था कि मेरे पिता दुनिया  सबसे मजबूत और  ताकतवर व्यक्ति हैं |</p> <p> <br />जब मैं 6  वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया कि मेरे पिता दुनिया के सबसे ताकतवर ही नहीं सबसे समझदार व्यक्ति भी हैं |<a href="http://lh6.ggpht.com/-BJCvMY4ZM9o/ThndNl8evDI/AAAAAAAAAJ4/O3qM6VawhPc/s1600-h/imagesCAOAUTSJ%25255B3%25255D.jpg"><img style="background-image: none; border-bottom: 0px; border-left: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: right; border-top: 0px; border-right: 0px; padding-top: 0px" title="imagesCAOAUTSJ" border="0" alt="imagesCAOAUTSJ" align="right" src="http://lh3.ggpht.com/-SbP8VXhYI2w/ThndOfp83EI/AAAAAAAAAJ8/C-BZY8YhB-Q/imagesCAOAUTSJ_thumb%25255B5%25255D.jpg?imgmax=800" width="206" height="197" /></a></p> <p> <br />जब मैं 9 वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया कि मेरे पिता को दुनिया की हर चीज का ज्ञान है |</p> <p> <br />जब मैं 12 वर्ष का हुआ तब मैं महसूस करने लगा कि मेरे मित्रो के पिता मेरे पिता के मुकाबले ज्यादा समझदार है |</p> <p> <br />जब मै 15 वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया कि मेरे पिता को दुनिया में  चलने के लिए कुछ और ज्ञान कि जरुरत है |</p> <p> <br />जब मैं 20 वर्ष का हुआ तब मुझे   महसूस हुआ कि मेरे पिता किसी और ही दुनिया के है और वे हमारी सोच के साथ नहीं चल सकते |</p> <p> <br />जब मैं 25 वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया मुझे किसी भी काम के बारे में अपने पिता से सलाह नहीं करनी चाहिए ,क्योकि उनमे हर काम में कमी निकलने कि आदत सी पड़ गई है |</p> <p> <br />जब मैं 30 वर्ष का हुआ तब में महसूस करने लगा कि मेरे पिता को मेरी नक़ल करके कुछ समझ आ गई है |</p> <p> <br />जब मैं 35 वर्ष का हुआ तब मै  महसूस करने लगा कि उनसे छोटी मोटी बातो के बारे  में सलाह ली जा सकती है |</p> <p> <br />जब मैं 40 वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया कि कुच्छ जरुरी मामलो में भी पिता जी से सलाह ली जा सकती है |</p> <p> <br />जब मैं 50 वर्ष का हुआ तब मैंने फैसला किया कि मुझे अपने पिता कि सलाह के बिना कुछ भी नहीं करना चाहिए ,क्योकि मुझे यह ज्ञान हो चुकाथा कि मेरे पिता दुनिया  के सबसे समझदार व्यक्ति है पर इससे पहले कि मैं अपने इस फैसले पर अमल कर पातामेरे पिता जी इस संसार को अलविदा कह गए और मैं अपने पिता कि हर सलाह और तजुर्बे से वंचित रहगया | <br />      <br />  ( एक प्रेरक  लोक कथा)</p> विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-72172805617626378922011-04-26T10:10:00.001+05:302011-04-26T10:10:44.064+05:30बहुत फेमिली प्रॉब्लम है<table border="10" cellspacing="10" cellpadding="10" width="545"><tbody> <tr> <td valign="top" width="505"> <p><strong>दो व्यक्ति एक बार में बैठे थे ..... <br />एक ने कहा ...." यार.... बहुत फेमिली प्रॉब्लम है <br />"दूसरा व्यक्ति : तु पहले मेरी सुन....... <br />मैंने एक विधवा महिला से शादी की </strong></p> <p><strong>जिसके एक लड़की थी ... <br />कुछ दिनों बाद पता चला कि <br />मेरे पिताजी को उस विधवा महिला कि पुत्री से प्यार है .. <br />और उन्होने इस तरह मेरी ही लड़की से शादी कर ली ..</strong></p> <p><strong>अब मेरे पिताजी मेरे दामाद बन गए और मेरी बेटी मेरी माँ बन गयी.. <br />और मेरी ही पत्नी मेरी नानी हो गयी !! <br />ज्यादा प्रॉब्लम तब हुई जब जब मेरे लड़का हुआ <br />अब मेरा लड़का मेरी माँ का भाई हो गया तो </strong></p> <p><strong>इस तरह मेरा मामा हो गया .परिस्थिति तो तब ख़राब हुई <br />जब मेरे पिताजी को लड़का हुआ <br />मेरे पिताजी का लड़का यानी मेरा भाई मेरा ही नवासा हो गया <br />और इस तरहमैं स्वयम का ही दादा हो गया <br />और स्वयम का ही पोता बन गया           </strong></p> <p><strong>                   और तू कहता है कि तुज्हे फेमिली प्रॉब्लम है <br /></strong></p> <p><strong> </strong></p> </td> </tr> </tbody></table> विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-28755633293485949402011-03-14T22:55:00.001+05:302011-03-14T23:09:19.560+05:30जिन्दगी और मैं<table border="10" cellspacing="10" cellpadding="10" width="603"><tbody> <tr> <td valign="top" width="563"> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर                                  </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">इस एक पल मैं  जिन्दगी </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।</font> </strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और</font> </strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">ये सिलसिला यहीं चलता रहता.....</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">तुम हार कर भी मुस्कुराते हो  </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार</font></strong><strong><font color="#0000ff">कर</font> </strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">तब मैंनें कहा</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">आगे ना बढ पायेगी,</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">तब</font> </strong><strong><font color="#0000ff">भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी</font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी </font></strong></p> <p align="left"><strong><font color="#0000ff">और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी </font></strong></p> </td> </tr> </tbody></table> विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-11422630282042740352011-02-22T23:27:00.001+05:302011-02-22T23:30:48.904+05:30बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए<table border="10" cellspacing="10" cellpadding="10" width="600"><tbody> <tr> <td valign="top" width="600"> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">सेठ घनश्याम दास कपड़े का बहुत बड़ा व्यापारी था। उसने ढेरों दौलत जमा कर रखी थी। उसका व्यापार आस-पास के देशों में भी फैल चुका था। वह कभी-कभी उन देशों की यात्रा भी किया करता था। जब उसका बेटा जवान हो गया तो वह अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाने लगा।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">एक बार घनश्याम दास ने अपने बेटे रामदास से कहा—‘‘हमारे पास दूर देश से बहुत बड़ा आर्डर आया है, तुम्हें सामान लेकर वहां जाना होगा।’’ रामदास ने अब तक किसी देश की यात्रा नहीं की थी। वह यह जानकर बहुत खुश हुआ कि उसके अब्बा उसे दूर देश भेज रहे हैं। उसने तुरंत वहां जाने की तैयारी शुरू कर दी।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">अगले दिन रामदास सामान लेकर यात्रा के लिए रवाना हो गया। वह होटल में सामान रखकर वहां के बाजार में घूमने निकला। रास्ते में उसने एक निराला फल बिकते देखा। उसने इतना बड़ा फल आज तक नहीं देखा था। वह फल के पास गया और फल को हाथ में उठाकर देखा तो हैरान रह गया कि ऊपर से कांटों वाला यह फल बहुत ही भारी था। रामदास ने पूछा—‘‘भाई, इसे क्या कहते हैं ?’ फल वाला हंसते हुए बोला-‘‘साहब, इसे कटहल कहते हैं।’’</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">रामदास ने कटहल को सूंघकर देखा तो उसे कटहल की खुशबू अच्छी लगी। वह सोचने लगा कि यदि इस कटहल की खुशबू इतनी अच्छी है तो स्वाद कितना अच्छा होगा ? परंतु मन ही मन रामदास यह सोच रहा था कि इतना बड़ा फल बहुत महंगा होगा। उसने फल वाले से पूछा—‘‘भाई, कटहल कितने का है ?’’ फल वाले ने उत्तर दिया—‘‘दस आने का।’’</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">रामदास को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा कि शायद उसने गलत सुना है या फल वाले का ध्यान कहीं और है, इस कारण उसने गलती से कटहल का दाम कम बता दिया है। उसने तुरंत जेब से पैसे निकाले और कटहल खरीद लिया। कटहल खरीद कर वह सीधे होटल पहुंचा। छुरी निकाल कर कटहल काट लिया और उसे खाने लगा। उसे कटहल का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था, इस कारण आधे से अधिक कटहल उसने खा लिया।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">खाने के पश्चात वह नल पर हाथ धोने गया, परंतु उसके हाथ व मुंह बुरी तरह से चिपक रहे थे, इस कारण साफ नहीं हो सके। हाथ धोने की कोशिश में वे और भी ज्यादा चिपक गए। उसने हाथों को बार-बार साबुन से रगड़ा परंतु वे साफ नहीं हो रहे थे। उसने देखा कि कटहल का रस कपड़ों पर लग गया है। उसने कपड़ों को नैपकिन से साफ करने की कोशिश की, परंतु नैपकिन कपड़ो से चिपक गया।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">वह अकेला था इस कारण समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। वैसे भी रामदास अपने घर से पहली बार अकेला निकला था। इस कारण थोड़ा घबरा रहा था। उसने सोचा कि होटल के मालिक या किसी नौकर से पूँछ लूं कि इसे कैसे साफ किया जाए। रामदास कमरे से बाहर निकल कर ज्यों ही किसी के सामने पड़ा वह व्यक्ति रामदास को देखकर हंसने लगा। रामदास की हिम्मत ही नहीं हुई कि वह किसी से कुछ पूछे।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">वह चुपचाप होटल के बाहर निकल गया। बाहर तेज हवा चल रही थी। सड़क के पत्ते उड़-उड़ कर रामदास के कपड़ों पर चिपकने लगे। उसकी मूछों के बाल भी चिपक कर अजीब से लग रहे थे। हवा के साथ धूल-मिट्टी, कागज, पंख आदि उसके कपड़ों व हाथों में चिपकते जा रहे थे। वह जिधर से निकलता, उधर से लोग उसे देखकर हंसने लगते। उसका चेहरा भी धूल से चिपकने से गंदा लगने लगा था।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">कुछ लोग उसे पागल समझकर उसके पीछे चलने लगे। रामदास समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। वह चुपचाप दुकान में घुस गया और एक कोने में छिपने का प्रयास करने लगा। संयोग से वह दुकान एक सर्राफ की थी। वहां ग्रहकों को दिखाए गए आभूषण एक मेज पर रखे थे। रामदास उस मेज से टकरा गया और कुछ आभूषण उसके कपड़ों से जा चिपके। ज्योंहि रामदास छिपने का प्रयास करने लगा दुकान के मालिकी निगाह उस पर गई।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">उसने चोर-चोर’ कह-कहकर शोर मचा दिया। दुकान के नौकरों ने रामदास को पकड़ लिया। भीड़ इकट्ठी हो गई। <br />पुलिस को खबर दी गई। रामदास ने लाख समझाया कि उसने चोरी नहीं की है परंतु उसके कपड़ों पर चिपके आभूषणों के कारण किसी को विश्वास न हुआ। उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। पुलिस ने रामदास से चोरी का कारण जानना चाहा तो उसने सविस्तार से कटहल खाने की पूरी बात उन्हें बता दी।</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">थानेदार हंसता हुआ बोला—‘‘अरे मियां, जब खाना नहीं आता था तो कटहल खाया क्यों ? अच्छा, यह बताओ कि तुम किस व्यापारी के यहां आए थे।’’ रामदास को उस व्यापारी के यहां ले जाया गया। परंतु उस व्यापारी ने रामदास के हुलिए के कारण उसे पहचानने से इन्कार कर दिया। तब रामदास ने अपना व अपने पिता का पूरा नाम बताया, साथ ही अपने साथ लाए सामान की पूरी जानकारी दी। इस पर व्यापारी ने उसे पहचानते हुए कहा—‘‘थानेदार जी, यह अपना ही बच्चा है। इसे छोड़ दीजिए। यह हालात के कारण मुसीबत में फंस गया है।’’</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita">अब रामदास बोला—‘‘पहले मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिलाइए।’’ व्यापारी ने रामदास को बदलने के लिए कपड़े दिए। उसका चेहरा व हाथ-पैर साफ करवाए, फिर उसकी अच्छी खातिरदारी की और कहा—</font></p> <p><font color="#8000ff" size="4" face="Aparajita"><font color="#ff0000"><strong><em>‘‘बेटा याद रख, किसी भी नई चीज को आजमाने से पहले उसकी जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए।’’</em></strong></font></font></p> </td> </tr> </tbody></table> विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-25052602318118190972011-02-11T23:46:00.003+05:302011-02-22T23:33:55.613+05:30मेरी आँखों का खयाल रखना .....<table border="10" cellpadding="10" cellspacing="10" width="600"><tbody> <tr> <td valign="top" width="560"> <p style="color: rgb(102, 51, 255);"><strong><span style="color: rgb(0, 64, 128);font-family:Arial Unicode MS;" >एक बार एक लड़का था ! जो एक लड़की को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था ! उसके परिवार वालो ने भी उसका कभी साथ नहीं दिया ,फिर भी वो उस लड़की को प्यार करता रहा लेकिन लड़की कुछ देख नहीं सकती थी मतलब अंधी थी ! लड़की हमेशा लड़के से कहती रहती थी की तुम मुझे इतना प्यार क्यूँ करते हो !</span></strong></p><p style="color: rgb(102, 51, 255);"><strong><span style="color: rgb(0, 64, 128);font-family:Arial Unicode MS;" >में तुम्हारे किसी काम नहीं आ सकती में तुम्हे वो प्यार नहीं दे सकती जो कोई और देगा लेकिन वो लड़का उसे हमेशा दिलाषा देता रहता की तुम ठीक हो जोगी तुम्ही मेरा पहला प्यार हो और रहोगी फिर कुछ साल ये सिलसिला चलता रहता है लड़का अपने पैसे से लड़की का ऑपरेशन करवाता है लड़की ऑपरेशन के बाद अब सब कुछ देख सकती थी लेकिन उससे पता चलता है की लड़का भी अँधा था तब लड़की कहती है की में तुमसे प्यार नहीं कर सकती तुम तोह अंधे हो.</span></strong></p><p style="color: rgb(102, 51, 255);"><strong><span style="color: rgb(0, 64, 128);font-family:Arial Unicode MS;" >में किसी अंधे आदमी को अपना जीवन साथी चुन सकती तुम्हारे साथ मेरा कोई भविष्य नहीं है ..तब लड़का मुस्कुराता है औरजाने लगता है और उसके आखिरी बोल होते है </span></strong></p> <p style="text-align: center;"><strong><span style="color: rgb(0, 64, 128);font-family:Arial Unicode MS;" >.................. ................ .................. </span></strong></p><div style="text-align: center;"> </div><p style="text-align: center;"><strong><span style="color: rgb(255, 0, 0);font-family:Arial Unicode MS;font-size:180%;" >मेरी आँखों का ख्याल रखना</span></strong></p> </td> </tr> </tbody></table>विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-22758638737082464532010-12-06T21:54:00.003+05:302011-02-22T21:42:03.397+05:30पुरानी यादें कभी खत्म नहीं होती<div style="text-align: center; color: rgb(255, 102, 0);"><span style="font-size:180%;"><span>जीवन</span> <span>की</span> <span>पुरानी</span> <span>यादों</span> <span>को</span> <span>भुलाने</span> <span>के</span></span> <span style="font-size:180%;"><br /><span><br />लिए</span> <span>मन</span> <span>को</span> <span>कठोर</span> <span>करना</span> <span>पड़ता</span> <span>है</span><br /><span><br />ताकि</span> <span>आप</span> <span>अपने</span> <span>पर</span> <span>काबू</span> <span>कर</span> <span>सके</span></span> </div>विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-573912617354212995.post-64548578612778039592010-11-05T19:37:00.001+05:302010-11-05T19:37:48.240+05:30दीपोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाये !<div style="text-align: center;"><a href="http://www.coolfreeimages.net/diwali_1.php"><img style="width: 499px; height: 325px;" alt="Free Orkut and My Space Diwali Graphics Glitters " src="http://www.coolfreeimages.net/images/diwali/diwali_07.gif" border="0" /></a><br /></div><br /><div style="color: rgb(103, 78, 167); text-align: center;"><span dir="ltr"></span><span style="font-size: 130%;"><a style="font-weight: bold;" href="http://vijaykaran76.blogspot.com/" rel="nofollow">मन की सोच</a><span style="font-weight: bold; font-size: large;"><span> ..............ब्लॉग की </span></span></span></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;"><span><span style="font-size: 130%;"></span></span></span><br /><span style="font-size: large;"><span><span style="font-size: 130%;"><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> तरफ से सभी मित्रो और पाठको को </span></span></span></span><br /><span style="font-size: large;"><span><span style="font-size: 130%;"></span></span></span><br /><span style="font-size: large;"><span><span style="font-size: 130%;"><span style="font-weight: bold;">दीपोत्सव</span><span style="font-weight: bold;"> की बहुत बहुत शुभकामनाये !</span></span></span></span><br /><span style="font-size: large;"><span></span></span><br /><br /><span style="font-size: large;"><span></span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-size: 180%;">विजय कर्ण</span></div>विजय कर्णhttp://www.blogger.com/profile/17448903143943379009noreply@blogger.com7