सेठ घनश्याम दास कपड़े का बहुत बड़ा व्यापारी था। उसने ढेरों दौलत जमा कर रखी थी। उसका व्यापार आस-पास के देशों में भी फैल चुका था। वह कभी-कभी उन देशों की यात्रा भी किया करता था। जब उसका बेटा जवान हो गया तो वह अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाने लगा। एक बार घनश्याम दास ने अपने बेटे रामदास से कहा—‘‘हमारे पास दूर देश से बहुत बड़ा आर्डर आया है, तुम्हें सामान लेकर वहां जाना होगा।’’ रामदास ने अब तक किसी देश की यात्रा नहीं की थी। वह यह जानकर बहुत खुश हुआ कि उसके अब्बा उसे दूर देश भेज रहे हैं। उसने तुरंत वहां जाने की तैयारी शुरू कर दी। अगले दिन रामदास सामान लेकर यात्रा के लिए रवाना हो गया। वह होटल में सामान रखकर वहां के बाजार में घूमने निकला। रास्ते में उसने एक निराला फल बिकते देखा। उसने इतना बड़ा फल आज तक नहीं देखा था। वह फल के पास गया और फल को हाथ में उठाकर देखा तो हैरान रह गया कि ऊपर से कांटों वाला यह फल बहुत ही भारी था। रामदास ने पूछा—‘‘भाई, इसे क्या कहते हैं ?’ फल वाला हंसते हुए बोला-‘‘साहब, इसे कटहल कहते हैं।’’ रामदास ने कटहल को सूंघकर देखा तो उसे कटहल की खुशबू अच्छी लगी। वह सोचने लगा कि यदि इस कटहल की खुशबू इतनी अच्छी है तो स्वाद कितना अच्छा होगा ? परंतु मन ही मन रामदास यह सोच रहा था कि इतना बड़ा फल बहुत महंगा होगा। उसने फल वाले से पूछा—‘‘भाई, कटहल कितने का है ?’’ फल वाले ने उत्तर दिया—‘‘दस आने का।’’ रामदास को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा कि शायद उसने गलत सुना है या फल वाले का ध्यान कहीं और है, इस कारण उसने गलती से कटहल का दाम कम बता दिया है। उसने तुरंत जेब से पैसे निकाले और कटहल खरीद लिया। कटहल खरीद कर वह सीधे होटल पहुंचा। छुरी निकाल कर कटहल काट लिया और उसे खाने लगा। उसे कटहल का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था, इस कारण आधे से अधिक कटहल उसने खा लिया। खाने के पश्चात वह नल पर हाथ धोने गया, परंतु उसके हाथ व मुंह बुरी तरह से चिपक रहे थे, इस कारण साफ नहीं हो सके। हाथ धोने की कोशिश में वे और भी ज्यादा चिपक गए। उसने हाथों को बार-बार साबुन से रगड़ा परंतु वे साफ नहीं हो रहे थे। उसने देखा कि कटहल का रस कपड़ों पर लग गया है। उसने कपड़ों को नैपकिन से साफ करने की कोशिश की, परंतु नैपकिन कपड़ो से चिपक गया। वह अकेला था इस कारण समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। वैसे भी रामदास अपने घर से पहली बार अकेला निकला था। इस कारण थोड़ा घबरा रहा था। उसने सोचा कि होटल के मालिक या किसी नौकर से पूँछ लूं कि इसे कैसे साफ किया जाए। रामदास कमरे से बाहर निकल कर ज्यों ही किसी के सामने पड़ा वह व्यक्ति रामदास को देखकर हंसने लगा। रामदास की हिम्मत ही नहीं हुई कि वह किसी से कुछ पूछे। वह चुपचाप होटल के बाहर निकल गया। बाहर तेज हवा चल रही थी। सड़क के पत्ते उड़-उड़ कर रामदास के कपड़ों पर चिपकने लगे। उसकी मूछों के बाल भी चिपक कर अजीब से लग रहे थे। हवा के साथ धूल-मिट्टी, कागज, पंख आदि उसके कपड़ों व हाथों में चिपकते जा रहे थे। वह जिधर से निकलता, उधर से लोग उसे देखकर हंसने लगते। उसका चेहरा भी धूल से चिपकने से गंदा लगने लगा था। कुछ लोग उसे पागल समझकर उसके पीछे चलने लगे। रामदास समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। वह चुपचाप दुकान में घुस गया और एक कोने में छिपने का प्रयास करने लगा। संयोग से वह दुकान एक सर्राफ की थी। वहां ग्रहकों को दिखाए गए आभूषण एक मेज पर रखे थे। रामदास उस मेज से टकरा गया और कुछ आभूषण उसके कपड़ों से जा चिपके। ज्योंहि रामदास छिपने का प्रयास करने लगा दुकान के मालिकी निगाह उस पर गई। उसने चोर-चोर’ कह-कहकर शोर मचा दिया। दुकान के नौकरों ने रामदास को पकड़ लिया। भीड़ इकट्ठी हो गई। पुलिस को खबर दी गई। रामदास ने लाख समझाया कि उसने चोरी नहीं की है परंतु उसके कपड़ों पर चिपके आभूषणों के कारण किसी को विश्वास न हुआ। उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। पुलिस ने रामदास से चोरी का कारण जानना चाहा तो उसने सविस्तार से कटहल खाने की पूरी बात उन्हें बता दी। थानेदार हंसता हुआ बोला—‘‘अरे मियां, जब खाना नहीं आता था तो कटहल खाया क्यों ? अच्छा, यह बताओ कि तुम किस व्यापारी के यहां आए थे।’’ रामदास को उस व्यापारी के यहां ले जाया गया। परंतु उस व्यापारी ने रामदास के हुलिए के कारण उसे पहचानने से इन्कार कर दिया। तब रामदास ने अपना व अपने पिता का पूरा नाम बताया, साथ ही अपने साथ लाए सामान की पूरी जानकारी दी। इस पर व्यापारी ने उसे पहचानते हुए कहा—‘‘थानेदार जी, यह अपना ही बच्चा है। इसे छोड़ दीजिए। यह हालात के कारण मुसीबत में फंस गया है।’’ अब रामदास बोला—‘‘पहले मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिलाइए।’’ व्यापारी ने रामदास को बदलने के लिए कपड़े दिए। उसका चेहरा व हाथ-पैर साफ करवाए, फिर उसकी अच्छी खातिरदारी की और कहा— ‘‘बेटा याद रख, किसी भी नई चीज को आजमाने से पहले उसकी जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए।’’ |